Sunday, 20 August 2017

किसानी -एक अंतहीन दुष्चक्र

लगभग -लगभग रोज समाचार पत्रों और टेलीविजन पर किसानों की आत्महत्या की भयावह तस्वीरें और समाचारों को सुनकर मन व्याकुल हो उठता है और यह सवाल उठाता है कि क्या कारण है कि आज अन्नदाता ही अन्न से महरूम है? आखिर क्यों स्वतंत्रता प्राप्ति के 70 वर्ष बाद भी कृषक समाज की जीवन में आमूलचूल परिवर्तन नहीं दिखाई देते और वह लगातार दूसरों के लिए अन्न उगाकर अपनी जीवन लीला समाप्त कर रहा है या तो दुखी जीवन व्यतीत कर रहा है? और इसी प्रश्न के आलोक में किसान समस्या पर प्रकाश डालेंगें।
           भारत में कृषि क्षेत्र रोजगार प्रदान करने में लगभग 52 प्रतिशत का योगदान देता है अर्थात लगभग 65 करोड़ लोग प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रुप से कृषि में संलग्न है। इस कृषि की कुछ विशेषताएं हैं जैसे- निम्न प्रौद्योगिकीय कृषि, निम्न जोत, सिंचाई सुविधाओं का अभाव, संस्थागत ऋण की कमी,  जागरूकता की कमी और उत्तराखंड के संबंध में इन सबके अलावा दुर्गम पर्वतीय क्षेत्र में सड़क सुविधाओं का ना होना, बाजार तक पहुंच का अभाव इस समस्या को और भी अधिक कठिन बना देता है इन सबके अलावा मानसून में कमी, अतिवृष्टि, बाढ़, सूखा जैसे प्राकृतिक प्रकोप से भी किसान को किसानी लगातार घाटे का सौदा लग रही है।

एन एस एस ओ की रिपोर्ट के अनुसार किसान अपने खर्चे का केवल 30% ही किसानी से प्राप्त कर पाता है, लगभग 85 प्रतिशत किसान ऋण से ग्रसित हैं तथा इतने ही किसान 2 हेक्टेयर से कम जमीन पर कृषि कार्य में संलग्न है किसानों की मासिक आय बमुश्किल ₹6500 है और इस बदहाली की भी क्षेत्रगत विषमताएं हैं बिहार उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में यह स्थिति और भी भयावह है।

सरकार ने इन सभी कारणों जो किसानों की बदहाली के लिए जिम्मेदार हैं उनसे निपटने के लिए अनेक कदम उठाए हैं जैसे -संस्थागत  ऋण के लिए 9 लाख करोड़ का आवंटन, सिंचाई सुविधाओं को मजबूत करने के लिए प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना, फसल बीमा योजना, मृदा स्वास्थ्य कार्ड, परंपरागत कृषि योजना, राष्ट्रीय कृषि बाजार योजना आदि अनेक योजनाएं किसानों के हित में चलाई जा रही हैं लेकिन फिर भी स्थिति अत्यंत चिंताजनक है। योजनाएं क्रियान्वयन के स्तर पर असफल सिद्ध हो रही है और समस्या वैसी की वैसी ही है। किसान एक अंतहीन दुष्चक्र में फंसता जा रहा  है। महंगे बीज लेकर कृषि करने वाला किसान पहले तो मानसून के साथ जुआ खेलता है फिर प्राकृतिक आपदाओं जैसे अतिवृष्टि, बाढ़, सूखा से दो चार होता है अंततः फसल उत्पादन हो जाने पर परिवहन, सड़क समस्याओं से जूझते हुए अनेक समस्याओं से घिरी मंडी और जहां मध्यस्थों का बोलबाला है मैं अपने उत्पाद को बेचता है और लागत का 50% भी प्राप्त नहीं कर पाता और उसे मजबूरन 50% के लिए ऊंची और भारी ब्याज दरों पर गैर संस्थागत ऋण लेना पड़ता है और फिर वही क्रम। किसान इस दलदल में फंसता रहता है और अंततः किसान किसानी छोड़ने का मन बना लेते हैं कुछ अपने जीवन लीला समाप्त करके अथवा कुछ पलायन और अन्य रोजगार की तलाश में।

जरूरत है एक ऐसी नीति की जो समग्रता और संपूर्णता लिए हो जिसमें राष्ट्रीय किसान आयोग की स्वामीनाथन रिपोर्ट के महत्वपूर्ण बिंदु शामिल हो, जो किसानों की बीज खरीद से उत्पाद बेचने तक की सभी बाधाओं को दूर कर सके तथा क्रियान्वन स्तर पर और अधिक जोर दे सके। बीजों की किस्में, खाद, कृषि यंत्र जैसी बुनियादी जरूरत किसान को सही कीमत और उचित गुणवत्ता में मिल सके, कृषि सिंचाई का और अधिक विस्तार किया जाए, जोखिम प्रबंधन तथा प्राकृतिक आपदा में नुकसान का उचित मूल्य किसानों को मिलें, बाजार में मध्यस्थों को हटाने के लिए व्यवस्थागत परिवर्तन किए जाएं तथा किसानों को सामाजिक सुरक्षा कवर देकर किसानों की आमदनी को बढ़ाया जा सकता है। साथ ही वैज्ञानिक शोध और अनुसंधान में और अधिक निवेश किया जाए ताकि भावी पीढ़ी की जरूरतों के लिए उच्च उत्पादन वाली प्रजातियों का विकास किया जाए जो किसानों और खाद्य सुरक्षा दोनों को मजबूती प्रदान  करेंगी। तभी 2022 तक किसानों की आमदनी दोगुना करने के उच्च एवं महत्वकांक्षी लक्ष्य को हम प्राप्त कर पाएंगे

Thursday, 25 May 2017

श्रीदेव सुमन

अपनी जननी-जन्मभूमि के प्रति ऐसी अपार बलिदानी  भावना रखने वाले  अमर शहीद श्रीदेव सुमन जी का जन्म टिहरी गढ़वाल जिले की बमुण्ड पट्टी के ग्राम जौल में हुआ था। उनका जन्म 25 मई, 1916 को बमुण्ड पट्टी के जौल गांव में श्रीमती तारादेवी की गोद में हुआ था. इनके पिता श्री हरिराम बडोनी क्षेत्र के प्रसिद्ध वैद्य थे. प्रारम्भिक शिक्षा चम्बा और मिडिल तक की शिक्षा उन्होंने टिहरी से पाई. संवेदनशील हृदय होने के कारण वे ‘सुमन’ उपनाम से कवितायें लिखते थे.

अपने गांव तथा टिहरी में उन्होंने राजा के कारिंदों द्वारा जनता पर किये जाने वाले अत्याचारों को देखा. 1930 में 14 वर्ष की किशोरावस्था में उन्होंने ‘नमक सत्याग्रह’ में भाग लिया. थाने में बेतों से पिटाई कर उन्हें 15 दिन के लिये जेल भेज दिया गया; पर इससे उनका उत्साह कम नहीं हुआ. अब तो जब भी जेल जाने का आह्वान होता, वे सदा अग्रिम पंक्ति में खड़े हो जाते.

पढ़ाई पूरी कर वे हिन्दू नेशनल स्कूल, देहरादून में पढ़ाने लगे. इसके साथ ही उन्होंने साहित्य रत्न, साहित्य भूषण, प्रभाकर, विशारद जैसी परीक्षायें भी उत्तीर्ण कीं. 1937 में उनका कविता संग्रह ‘सुमन सौरभ’ प्रकाशित हुआ. वे हिन्दू, धर्मराज, राष्ट्रमत, कर्मभूमि जैसे हिन्दी व अंग्र्रेजी पत्रों के सम्पादन से जुड़े रहे. वे ‘हिन्दी साहित्य सम्मेलन’ के भी सक्रिय कार्यकर्ता थे. उन्होंने गढ़ देश सेवा संघ, हिमालय सेवा संघ, हिमालय प्रांतीय देशी राज्य प्रजा परिषद, हिमालय राष्ट्रीय शिक्षा परिषद आदि संस्थाओं के स्थापना की.

1938 में विनय लक्ष्मी से विवाह के कुछ समय बाद ही श्रीनगर गढ़वाल में आयोजित एक सम्मेलन में नेहरू जी की उपस्थिति में उन्होंने बहुत प्रभावी भाषण दिया. अगस्त 1942 में जब भारत छोड़ो आन्दोलन प्रारम्भ हुआ तो टिहरी आते समय इन्हें 29 अगस्त, 1942 को देवप्रयाग में ही गिरफ्तार कर लिया गया और 10 दिन मुनि की रेती जेल में रखने के बाद 6 सितम्बर को देहरादून जेल भेज दिया गया। ढ़ाई महीने देहरादून जेल में रखने के बाद इन्हें आगरा सेन्ट्रल जेल भेज दिया गया, जहां ये 14 महीने नजरबन्द रखे गये।

इस बीच टिहरी रियासत की जनता लगातार लामबंद होती रही और रियासत उनका उत्पीड़न करती रही। टिहरी रियासत के जुल्मों के संबंध में इस दौरान  जवाहर लाल नेहरु ने कहा कि  टिहरी राज्य के कैदखाने दुनिया भर में मशहूर रहेंगे, लेकिन इससे दुनिया में रियासत की कोई इज्जत नहीं बढ़ सकती। इन्हीं परिस्थितियों में यह 19 नवम्बर, 1943 को आगरा जेल से रिहा हुये। यह फिर टिहरी की जनता के अधिकारों को लेकर अपनी आवाज बुलन्द करने लगे, इनके शब्द थे कि मैं अपने शरीर के कण-कण को नष्ट हो जाने दूंगा लेकिन टिहरी के नागरिक अधिकारों को कुचलने नहीं दूंगा। इस बीच इन्होंने दरबार और प्रजामण्डल के बीच सम्मानजनक समझौता कराने का संधि प्रस्ताव भी भेजा, लेकिन दरबारियों ने उसे खारिज कर इनके पीछे पुलिस और गुप्तचर लगवा दिये। 27 दिसम्बर, 1943 को इन्हें चम्बाखाल में पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया और 30 दिसम्बर को टिहरी जेल भिजवा दिया गया

राजनीतिक बन्दी होने के बाद भी उन पर अमानवीय अत्याचार किए गये. उन्हें जानबूझ कर खराब खाना दिया जाता था. बार-बार कहने पर भी कोई सुनवाई न होती देख तीन मई, 1944 से उन्होंने आमरण अनशन प्रारम्भ कर दिया. शासन ने अनशन तुड़वाने का बहुत प्रयास किया; पर वे अडिग रहे और 84 दिन बाद 25 जुलाई, 1944 को जेल में ही उन्होंने शरीर त्याग दिया. जेलकर्मियों ने रात में ही उनका शव एक कंबल में लपेट कर भागीरथी और भिलंगना नदी के संगम स्थल पर फेंक दिया.

सुमन जी के बलिदान का अर्घ्य पाकर टिहरी राज्य में आंदोलन और तेज हो गया. एक अगस्त, 1949 को टिहरी राज्य का भारतीय गणराज्य में विलय हुआ. तब से प्रतिवर्ष 25 जुलाई को उनकी स्मृति में ‘सुमन दिवस’ मनाया जाता है. अब पुराना टिहरी शहर, जेल और काल कोठरी तो बांध में डूब गयी है; पर नई टिहरी की जेल में वह हथकड़ी व बेड़ियां सुरक्षित हैं. हजारों लोग वहां जाकर उनके दर्शन कर उस अमर बलिदानी को श्रद्धा सुमन अर्पित करते हैं.

                                                                                                                                                              
                                                                                                                                         
                                                        

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उत्तराखंड : परिवहन

                                 सड़क परिवहन तंत्र

. पर्वतीय भौतिक संरचना के कारण उत्तराखंड के लगभग 40 प्रतिशत भू-भाग पर सड़कों का विकास अभी तक नहीं हो पाया है।

. राज्य में राष्ट्रीय राजमार्गों की संख्या 14 है जिसकी कुल लंबाई 1375 किलोमीटर है।

. राज्य के गढ़वाल मंडल में सड़कों की लंबाई कुमाऊं मंडल से ज्यादा है।

. बद्रीनाथ धाम राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या 58 से जुड़ा है।

. केदारनाथ राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या 109 पर स्थित है।

. गंगोत्री राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या 108 पर स्थित है।

. यमुनोत्री राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या 94 पर स्थित है।

. उत्तराखंड का सबसे बड़ा राष्ट्रीय राजमार्ग 58 है (376 किलोमीटर)।

. सबसे छोटा राष्ट्रीय राजमार्ग 72 A है जिसकी लंबाई 15 किलोमीटर है।

. चारों धाम को 12 महीने सुरक्षित रुप से जोड़ने वाली चार धाम सड़क परियोजना इसकी लंबाई 900 किलोमीटर है वर्तमान में निर्माणाधीन है इसकी कुल लागत 12000 करोड रुपए है इस परियोजना के तहत पुल, बाईपास और टनल के द्वारा मजबूत और अंतर्राष्ट्रीय मानकों  पर आधारित  राजमार्ग द्वारा चार धाम यात्रा को सुरक्षित, सुगम और यात्रा अनुकूल बनाया जाएगा। जिससे उत्तराखंड में मौजूद पर्यटन की अवसरों का उचित दोहन हो पाएगा और रोजगार के अवसर बढ़ेंगे।

. टिहरी गढ़वाल जिले में पांच सड़कों वाला चौराहा स्थित है।

. त्यूनी देहरादून से लोहाघाट चंपावत को जोड़ने वाली 659 किलोमीटर लंबी दो लाइन वाली परियोजना "हिमालयन हाईवे "वर्तमान में निर्माणाधीन है।

. गढ़वाल मोटर ऑनर्स यूनियन लिमिटेड की स्थापना 1941 में कोटद्वार में हुई इसका एक कार्यालय ऋषिकेश में भी है।

. कुमाऊं मोटर ऑनर्स यूनियन लिमिटेड की स्थापना 1939 में काठगोदाम में हुई थी इसका कार्यालय रामनगर तक टनकपुर में है।

. गढ़वाल मोटर यूजर्स कोआपरेटिव ट्रांसपोर्ट  सोसाइटी लिमिटेड की स्थापना 1958 में रामनगर में हुई।



                                        रेल परिवहन

.पर्वतीय भौगोलिक संरचना के कारण प्रदेश में रेल पत्र का विस्तार बहुत कम है है लगभग 345 किलोमीटर।
राज्य के केवल 6 जिलों हरिद्वार, देहरादून ,पौड़ी, उधमसिंहनगर, नैनीताल और चंपावत में रेल लाइनें बिछाई गई है।

.राज्य में छोटे बड़े कुल 41 रेलवे  स्टेशन है।

.उपरोक्त 6 जिलों में सर्वाधिक रेलपथ वाला जिला हरिद्वार तथा सबसे कम रेलपथ वाला जिला पौड़ी गढ़वाल है।
 
.राज्य में बिछाई की प्रथम रेल लाइन रामपुर से किच्छा से लाल कुआं से काठगोदाम है जोकि 1884 से परिचालन में है।

.देहरादून रेलवे स्टेशन मार्च 1900 में स्थापित किया गया। यह उत्तर रेलवे का सबसे आखिरी रेलवे स्टेशन है।

.यमुनोत्री, गंगोत्री, केदारनाथ एवं बदरीनाथ को 12 महीने चलने वाले चौड़े राष्ट्रीय राजमार्ग परियोजना पर काम शुरू होने के बाद हिन्दू समुदाय के पवित्र चारों धाम को रेललिंक से जोड़ने का परियोजना प्रस्तावित है जिसका सर्वेक्षण कार्य वर्तमान में जारी है। चार धाम को रेललिंक से जोड़ने की पूरी योजना पर 43 हजार 292 करोड़ रुपये की लागत आने का अनुमान है. इस परियोजना के तहत रेल लाइन बिछाने के अलावा भूस्खलन एवं पर्यावरण बचाव पर भी काम किया जायेगा.


                                      हवाई परिवहन

Wednesday, 24 May 2017

बहुउद्देशीय परियोजनाएं

बहुद्देशीय परियोजनाओं से सिचाई के अलावा बाढ़ नियंत्रण, पेयजल आपूर्ति, जलीय परिवहन जल विद्युत उत्पादन, पर्यटन आदि कार्य किए जा सकते हैं।

. जवाहरलाल नेहरू ने बहुउद्देशीय परियोजनाओं को "आधुनिक भारत के मंदिर "एवं "नए तीर्थ " कहा था। 

. भारत की कुछ महत्वपूर्ण नदी परियोजनाएं निम्नलिखित हैं-


1- दामोदर घाटी परियोजना- हुगली की सहायक नदी दामोदर पर स्थापित यह स्वतंत्र भारत की प्रथम बहुउद्देशीय परियोजना है। संयुक्त राज्य अमेरिका की टेनिसी घाटी परियोजना के आधार पर सन 1948 में इसकी शुरुआत की गई। यह झारखंड और पश्चिम बंगाल दो राज्य की परियोजना है।


2- भाखड़ा नांगल परियोजना- देश की सबसे बड़ी बहुउद्देशीय परियोजना । यह पंजाब, हरियाणा और राजस्थान की संयुक्त परियोजना है। भाखड़ा बांध संसार का सबसे ऊंचा गुरुत्वीय बांध है। (226 मीटर) इस बांध के पीछे बनी झील का नाम गोविंद सागर है जो हिमाचल प्रदेश में स्थित है।


3- कोसी परियोजना-  बिहार में स्थित यह परियोजना बिहार का शोक कही जाने वाली कोसी नदी पर स्थापित है। कोसी मार्ग परिवर्तन और विनाशकारी बाढ़ के लिए जानी जाती है।


4- रिहंद परियोजना- यह परियोजना सोन की सहायक नदी रिहंद पर स्थापित है। इस बांध के पीछे गोविंद बल्लभ पंत सागर नामक एक कृत्रिम झील बनाई गई है जो भारत की सबसे बड़ी कृत्रिम झील है। यह उत्तरप्रदेश और मध्यप्रदेश की सीमा पर स्थित है।


5- चंबल परियोजना- यमुना की सहायक नदी चंबल पर स्थापित। मध्यप्रदेश और राजस्थान की संयुक्त परियोजना। इस परियोजना के अंतर्गत मध्यप्रदेश में गांधी सागर बांध तथा राजस्थान में राणा प्रताप सागर बांध, जवाहर सागर बांध तथा कोटा बैराज बनाए गए हैं। इस योजना का मुख्य उद्देश्य चंबल नदी द्रोणी में मृदा संरक्षण करना है।


6- हीराकुंड परियोजना- हीराकुंड परियोजना महानदी पर स्थित उड़ीसा की महत्वपूर्ण परियोजना है। महानदी उड़ीसा का शोक कहलाती क्योंकि इसमें कई बार भयंकर बाढ़ के कारण जान माल की हानि होती रही है इस परियोजना के स्थापित होने से इस खतरे में कमी आई है।


7- इंदिरा गांधी नहर परियोजना- विश्व की विशालतम सिंचाई परियोजना। इसका उद्घाटन 1958 में तत्कालीन गृहमंत्री गोविंद वल्लभ पंत ने किया था। यह नहर सतलुज और व्यास के संगम पर स्थित हरिके बैराज से निकाली गई है। यह राजस्थान के शुष्क व अर्ध शुष्क क्षेत्रों को सिंचाई सुविधा प्रदान करती है। इस नहर ने थार मरुस्थल को हरियाली में बदल दिया है। खाद्यान्न उत्पादन में बढ़ोत्तरी, पेयजल की उपलब्धता तथा मरुस्थल के प्रसार पर नियंत्रण आदि इस योजना के अन्य महत्वपूर्ण लाभ हैं।


8-टिहरी बांध परियोजना- भागीरथी और भिलंगना के संगम पर स्थापित यह परियोजना उत्तराखंड में स्थित है। यह एशिया का सबसे ऊंचा तथा दुनिया का चौथा सबसे ऊंचा मिट्टी और पत्थर निर्मित बांध है। इस परियोजना की कुल विद्युत उत्पादन क्षमता 2400 मेगावाट है। बांध के पीछे स्वामी रामतीर्थ सागर नामक झील निर्मित है। इस बांध का डिजाइन जेम्स ब्राउन ने तैयार किया था।


9- नर्मदा घाटी परियोजना- मध्य प्रदेश गुजरात और महाराष्ट्र की संयुक्त परियोजना जो भारत की पांचवी विशालतम नदी और पश्चिम की ओर बहने वाली देश की सबसे लंबी नदी नर्मदा पर स्थापित है। इस नदी पर गुजरात में सरदार सरोवर बांध तथा मध्यप्रदेश में नर्मदा सागर बांध की स्थापना की गई है।


A- सरदार सरोवर परियोजना- मध्य प्रदेश महाराष्ट्र गुजरात की संयुक्त परियोजना नर्मदा नदी पर स्थापित है।
B- नर्मदा सागर परियोजना- इसे इंदिरा सागर बांध भी कहा जाता है इस परियोजना के अंतर्गत नर्मदा नदी पर पुनासा (मध्य प्रदेश )में बांध का निर्माण किया गया है ।


10- केन बेतवा लिंक परियोजना- नदी जोड़ो परियोजना के अंतर्गत प्रस्तावित यह परियोजना उत्तरप्रदेश और मध्यप्रदेश की संयुक्त परियोजना है जिसके द्वारा दोनों राज्यों में पानी की कमी वाले क्षेत्रों को पेयजल और सिंचाई के लिए पर्याप्त  जल उपलब्ध हो सकेगा।

उत्तराखंड के युवाओं के लिए खुशखबरी, जल्द निकलेगी बंपर भर्तियां

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उत्तराखंड में त्रिवेंद्र सरकार ने अब तक का सबसे बड़ा फैसला लिया है । इस फैसले से बेरोजगार युवाओं के चेहरे खिल उठेंगे ।
बुधवार को मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने कहा कि सरकार जल्द ही प्रदेशभर में पटवारियों की एक हजार से ज्यादा वैकेंसी निकालेगी । यह बात उन्होंने सचिवालय में कृषि मंत्रालय की समीक्षा बैठक के बाद कही ।
सीएम ने कहा है कि आगे होने वाली कैबिनेट में निर्णय लिया जाएगा और पटवारियों के पदों पर मुहर लगने की प्रक्रिया अमल में लायी जायेगी।



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देश के प्रमुख जलप्रपात


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Tuesday, 23 May 2017

Saturday, 20 May 2017

समूह ग के 2000 पदों पर जल्द ही होगी भर्ती


माप तौल प्रणालियाँ- उत्तराखंड

अनाज संबंधित मापतौल -
. 1 मुट्ठी     -         62.5 ग्राम
. 1 सेर.     -         8 मुट्ठी        -     500 ग्राम
. 1 कूडी़    -         1 किलोग्राम
. 1पाथा     -         2 किलोग्राम
. 1डाल.   -          16 किलोग्राम
. 1दूण.     -          32 किलोग्राम
. 1विशत.  -         20 किलोग्राम
. 1मण.     -         40 किलोग्राम
. 1खार.    -         640 किलोग्राम


भूमि संबंधी मापन-

. 16 मुट्ठी ( बीज की मात्रा )  -         एक नाली
अर्थात जितनी भूमि पर 16 मुट्ठी बीज की मात्रा बोयी जा सके।

.  2.5 नाली     -     1 बीघा      -   40  मुट्ठी


द्रव संबंधी मापन प्रणाली-
घी तेल शहद आदि पदार्थों का विनिमय इस प्रणाली द्वारा होता था।
. 1 तामी      -        250 ग्राम
. 2 तामी      -        1 सेर.     -  500 ग्राम
. 2 सेर.       -         1 कूडी़   -  1 किलोग्राम

Friday, 19 May 2017

पारंपरिक लोकवाद्य -उत्तराखंड

राज्य का लोक वाद्य- ढोल
( ढोल को वर्ष 2015 में राज्य का लोक वाद्य घोषित किया गया)

◆उत्तराखंड में प्रचलित जाने वाले लगभग 36 लोक वाद्य को निम्न श्रेणी में वर्गीकृत किया जा सकता है-

1. घन  वाद्य-  लौहपदार्थ अथवा ठोस सतह  से संबंधित  वाद्य यंत्र
विणाई, कांसे की थाली, मजीरा, घाना, घुंघरू कसेरी, चिमटा, करताल आदि।

2.  अवनद्ध वाद्य/ चर्म वाद्य-  चमड़े  से निर्मित वाद्य यंत्र
हुड़का, दमाऊ, ढोल, नगाड़ा, डफली, डमर, डौंर, ढोलकी आदि।

3.सुषिर वाद्य-  वायु  संबंधित
रणसिंहा, नागफनी, मशकबीन, शंख, भौकर/ भकोरा , मुरूली, जोया मुरूली, तुरही।

4. तांत/तार वाद्य-  तार  से संबंधित
सारंगी, दोतारा, इकतारा, गोपी यंत्र/ गोपी इकतारा

आभूषण- उत्तराखंड








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Thursday, 18 May 2017

उत्तराखंड के बुग्याल

बेदनी बुग्याल, पातर नचौनिया, गोंरसों, औली, रुद्रनाथ, नंदनकानन, सतोपंथ, पांडूसेरा, राताकोण, बागची, खादू - चमोली
हरकीदून, देवदामिनी, दयारा, केदारखर्क, तपोवन, कुश कल्याण- उत्तरकाशी
बर्मी, कसनी- रुद्रप्रयाग
पावली कांठा-टिहरी

मौसम और जलवायु

मौसम- किसी स्थान या प्रदेश की अल्पकालिक वायुमंडलीय दशाओं का सूचक अथवा योग है, मौसम जलवायु की अल्पकालीन दशाओं को प्रकट करता है है| वायुमंडल की दैनिक दशाएं जैसे -ताप,नमी ,वायु ,आद्रता अल्पकाल में ही परिवर्तित होते रहते हैं मौसम कहलाती है| मौसम क्षण- प्रतिक्षण परिवर्तित होता है रहता है| 

जलवायु- जिस प्रकार मौसम वायुमंडल की अल्पकालिक दशाओं का सूचक है उसी प्रकार जलवायु वायुमंडल अर्थात मौसम के तत्वों की दीर्घकालीन अवस्थाओं का सूचक है| जलवायु दीर्घकालिक अवधि में मौसम के तत्वों (जैसे तापमान, वायुदाब ,आर्द्रता, वर्षा ,बादल ,वायु आदि) की औसत को प्रदर्शित करता है| अंतरराष्ट्रीय मौसम विज्ञान संस्थान ने जलवायु के लिए 31 वर्षों की अवधि के मौसम का औसत उपयुक्त माना है| 

मौसम और जलवायु के तत्व-
मौसम और जलवायु के मुख्य तत्व तापमान, वायदाब, वायु राशि, वर्षा,बादल आदि होते हैं सभी तत्व परिवर्तनशील होते हैं सभी तत्वों मैं वायुमंडल का तापमान आधारभूत एवं सर्वाधिक महत्वपूर्ण है क्योंकि इसमें होने वाले तत्कालीन परिवर्तन अन्य तत्वों में भी परिवर्तन ला देते हैं जिससे मौसम भी परिवर्तित हो जाता है इस प्रकार मौसम अत्यंत गतिशील है| 

मौसम और जलवायु में निम्नलिखित पांच तत्व महत्वपूर्ण होते हैं-
1- वायुमंडल का तापमान अथवा सूर्यताप
2- वायुमंडलीय दाब
3- पवन
4- वायुमंडलीय आद्रता
5- वर्षण जिनमें जल वर्षा, हिमपात, कोहरा, पाला, ओस, बादल आदि शामिल है|

आईपीएल- 2020 संस्करण के सबसे महंगे खिलाड़ी बने पैट कमिंस,आईपीएल इतिहास के दूसरे सबसे महंगे खिलाड़ी

आईपीएल के 13वें सीजन के लिए खिलाड़ियों की नीलामी कोलकाता में संपन्न हुई। 73 स्थानों के लिए 338 खिलाड़ियों की बोली लगाई गई है। ऑस्ट्रेलिया के...